किस रानी ने युद्ध में जाते अपने पति को अपना सिर काट कर दे दिया था ताकि उसका ध्यान न भटके

भारत में हमेशा नारियों को देवियों की तरह पूजा जाता है और भारतीय नारियों ने भी ऐसे-ऐसे उच्च आदर्श प्रस्तुत किए हैं जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

ऐसी ही एक ऐतिहासिक घटना है जिसमें एक वीर योद्धा ने युद्ध में जाते वक्त अपनी रानी से उसकी एक निशानी मांगी ताकि वो याद आने पर वो निशानी देख लिया करे।

देशभक्त और स्वाभिमानी रानी ने राजा को अपना सिर काट कर भेंट कर दिया ताकि उसका ध्यान अपनी मातृभूमि के लिए युद्ध में रहे ना की रानी के ऊपर।

कौन थी वो महान हिन्दू रानी

मेवाड़ (उदयपुर) में सन 1652 से 1680 तक महाराणा राज सिंह का शासन था जो सिसोदिया राजवंश से थे। इनके पिता का नाम महाराणा जगत सिंह जी प्रथम था।

इनके सेनापति रावत रतनसिंह चूंडावत थे। इनके पास राजा महाराणा राज सिंह का संदेश आया की औरेंगेजेब की सेना ने हमला कर दिया है और तुमको औरेंगेजेब को अरावली पर्वतमाला और उदयपुर के बीच में रोक कर रखना है।

चुंडावत रतन सिंह की हफ्ते भर पहले ही हाड़ा राजपूत सरदार की बेटी हाड़ी रानी से शादी हुई थी। हाड़ी रानी बूंदी के शासक संग्राम सिंह हाड़ी की पुत्री थीं। इनका वास्तविक नाम सलेह कंवर था और ये दुर्गा माता की भक्त थीं।

हाड़ी रानी को बूंदी के हाड़ा शासकों की पुत्री होने के कारण हाड़ी रानी कहा जाता था।

रावत रतनसिंह चूंडावत अभी युद्ध में जाने के पक्ष में नहीं थे।

इन्होंने युद्ध में जाने की बात हाड़ी रानी से बताई तो उनको भी दुख हुआ। हाड़ी रानी की हाथों की मेहंदी तक ना छूटी थी और पैरों का आलता भी सुर्ख लाल लगा हुआ था।

लेकिन हाड़ी रानी ने अपने पति को बोला की “चुंडावत तो हरावल दस्ते में युद्ध करके विजयी हुए हैं और आपको उसका मान रखना है”

यह सुनकर चुंडावत युद्ध में जाने के लिए तैयार हो गए लेकीन उनका मन नहीं लग रहा था।

जब वो युद्ध के लिए जा रहे थे तो उन्होंने रास्ते से संदेश वाहक से हाड़ी रानी को एक संदेश भिजवाया जिसमें लिखा था की “मुझे भूलना मत, मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही है और मैं जल्द ही तुमसे वापस मिलने आऊंगा। तब तक तुम अपनी कोई निशानी मुझे भेज दी ताकी मैं उसको देख कर तुमको याद कर सकूं “

यह संदेश पढ़कर हाड़ी रानी परेशान हो गईं और उन्होंने सोचा की अगर उनका पति ऐसे ही उनके प्रेम में पड़ा रहा तो वो युद्ध कैसे जीतेगा और अपनी मातृभूमि की रक्षा आक्रमणकारी मुगलों से कैसे करेगा।

उन्होंने काफी सोचा फिर संदेशवाहक से कहा की मैं एक पत्र के साथ उनको एक निशानी भेज रही हूं लेकीन ये ध्यान रहे की ये निशानी एक थाल में सजा कर लाल चुनरी से ढंक कर मेरे पति को देना, कोई और इसे देख भी न पाए।

हाड़ी रानी ने पत्र में लिखा की प्रिय मैं तुम्हें अपनी अंतिम निशानी भेज रही हूं और तुमको मोह के बंधनों से आजाद कर रही हूं।

तुम निश्चिंत होकर अपने कर्तव्य का पालन करो मैं तुमसे स्वर्ग में मिलूंगी।

इतना लिखकर उन्होंने यह पत्र संदेश वाहक को दिया और उससे कहा की मेरा सिर थाल में सजा कर मेरे पति को दे देना।

इससे पहले की संदेश वाहक कुछ बोलता हाड़ी रानी ने अपनी तलवार से अपना सिर धड़ से अलग कर दिया। यह देखकर संदेश वाहक कांप गया और बुरी तरह डर गया।

आंखो में आंसू भरकर उसने हाड़ी रानी का सिर स्वर्ण थाल में लिया और उसे कहे अनुसार लाल चुनरी से ओढ़ा कर भारी और व्यथित मन से युद्ध भूमि की ओर चल पड़ा।

युद्ध के मैदान में संदेश वाहक को देखकर चुंडावत बहुत प्रसन्न हुए और उससे पूछा की मेरी रानी ने क्या निशानी भेजी है।

यह सुनकर संदेश वाहक ने कांपते हुए वह थाल चुंडावत को दिया और उससे चुनरी हटा दी।

अपनी रानी का सिर देखकर चुंडावत घुटनों के बल बैठ गए और रोते हुए बोले की “तुमने मेरी सबसे प्यारी वस्तु मुझसे छीन ली है और अब मुझे इन बंधनों से मुक्त कर दिया है। मैं जल्द ही तुमसे मिलने स्वर्ग में आऊंगा”

इतना कहते ही वो शत्रु के ऊपर काल बनकर टूट पड़े और औरेंजेब की सेना को वहां से वापस लौटने को मजबूर कर दिया।

युद्ध जीतने के बाद इन्होंने अपना सिर काटकर युद्ध भूमि में फेंक दिया।

धन्य हो उस देवी हाड़ी रानी को जिसके इस बलिदान के कारण आक्रमणकारी मुगलों को भागना पड़ा।

ऐसी ही अनेकों वीरों से भारत माता की पावन धरती सजी है और इतने साल तक असंख्य पीड़ा और बलिदान को सहते हुए हिंदू समाज को बचा कर रखा है।

उनके ऊपर एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है

“चुण्डावत मांगी सैनाणी,
सिर काट दे दियो क्षत्राणी”

हाड़ी रानी के सम्मान में टोंक जिले के उनके नाम पर एक बावड़ी (एक तरह का पानी का कुआं) है जिसे हाड़ी रानी की बावड़ी कहा जाता है।

यह बहुत ही आकर्षित करने वाली बावड़ी है और हजारों पर्यटक इसे हर साल देखने आते हैं। यह तीन मंजिला सीढ़ीदार बावड़ी है। इस बावड़ी का निर्माण 17 शताब्दी में किया गया था।

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